केवल यही एकमात्र ऐसा व्रत है, जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, स्त्री-पुरुष तथा अविवाहित कन्या आदि सभी प्रकार के मनुष्यों को समान अधिकार प्राप्त है। इस व्रत को करने वाला पूर्णिमा, अमावस्या, दशमी अथवा संक्रांति, जिस दिन भी वो चाहे सायंकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा-स्थान में आसन पर बैठकर आचमन लें और श्रीगणेश, शिव-पार्वती, वरुण और विष्णु आदि सब देवताओं का ध्यान करके यह संकल्प लें-
“मैं सदैव भगवान श्री सत्यनारायणजी का पूजन-मनन करूंगा/करूंगी। अत्यंत भक्ति और प्रेम से भगवान का जल और प्रसाद ग्रहण करूंगा।” यह संकल्प लेकर गणेशादि सभी देवताओं की पूजा करें। पुष्पमाला हाथ में लेकर श्री सत्यनारायण की कथा को कहते हुए, उनका स्मरण करें और कहें, “हे तीनों लोकों के स्वामी! मेरे सब कष्टों को दूर करके मुझे मोक्ष प्रदान करो। ”
मनोकामना के पूर्ण हो जाने पर व्रत का उद्यापन करें। 1 संक्षिप्त कथा: एक बार नैमिषारण्य (वन) में शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषियों ने सूत जी से पूछा, “हे प्रभु! इस कलियुग में वेदविद्या रहित मानवों को मोक्ष किस प्रकार मिलेगा ?”
सूतजी बोले, “हे वैष्णवों! आपने सब प्राणियों के हित के निमित्त यह बात पूछी है, अतः मैं आपको सत्यनारायण व्रत के बारे में बताऊंगा। एक बार नारद जी दूसरों के हित की इच्छा से अनेक लोकों में विचरण करते हुए पृथ्वीलोक में पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि प्रायः सभी मनुष्य नाना प्रकार के कष्टों को भोग रहे हैं। यह देख नारद जी सोचने लगे कि आखिर किस यत्न से इन प्राणियों के कष्ट दूर हो सकते हैं।
काफी सोच- विचार के बाद वह विष्णुलोक में गए। वहां देवों के देव श्री लक्ष्मीनारायण जी को देखकर नारद जी बार-बार उनकी स्तुति करने लगे। भगवान ने उनसे वहां आने का कारण पूछा, तो नारद जी हाथ जोड़कर बोले-हे भगवन! आप अत्यंत शक्ति- संपन्न हैं। भगवन, मैंने पृथ्वी पर मानवों की बड़ी बुरी दशा देखी है, कृपया बताइए कि मानवों का दुख कैसे दूर हो सकता है ?
यह सुनकर लक्ष्मीनारायणजी बोले- जिस कार्य को करने से मानव मोह छूट जाता है, वह मैं कहता हूं, ध्यान से सुनो- बहुत से पुण्यों को देने वाला एक दुर्लभ व्रत है। आज मैं उस व्रत के बारे में बतलाता हूं। वह व्रत सत्यनारायणजी का है। इस व्रत के धारण करने से मानव मृत्युलोक में भी सुख को भोगकर अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है।
हे नारद! कष्ट, शोक आदि को दूर करने वाला, धन- धान्य को बढ़ाने वाला, सौभाग्य को देने वाला तथा सब विषयों में विजय दिलाने वाला श्री सत्यनारायणजी का व्रत संध्या समय ब्राह्मणों और बंधुओं के साथ धर्मपरायण होकर करना चाहिए। पृथ्वी पर जिसने सबसे पहले इस व्रत को किया था, अब मैं इसके बारे में बताता हूं। हे नारद! किसी समय काशीपुर नगर में एक ब्राह्मण रहता था। वह अति निर्धन था। उसे एक समय भी भरपेट भोजन नहीं मिलता था। भूख-प्यास से बेचैन वह रात- दिन इधर-उधर मारा-मारा फिरता था।
उस ब्राह्मण से प्रेम करने वाले भगवान ने बूढ़े ब्राह्मण का रूप धारण करके उसके पास जाकर पूछा- हे विप्र ! तू नित्य प्रतिदिन सुबह से लेकर संध्या तक इधर-उधर घूमता रहता है। आखिर क्या कष्ट है ? तू निःसंकोच मुझ से कह? इस पर ब्राह्मण बोला कि हे ब्रह्म स्वरूप ! मैं बहुत निर्धन ब्राह्मण हूं। भिक्षा के लिए दिन-रात भ्रमण करता हूँ। फिर भी मुझे एक जून का खाना नहीं मिलता। इसलिए हे महानुभाव! यदि आप इसका उपाय जानते हैं, तो कृपया मुझे बताएं? तब वृद्ध ब्राह्मण के रूप में भगवान बोले- हे त्रिप! तीनों लोकों में भगवान सत्यनारायण मनवांछित फल प्रदान करने वाले हैं। उनका व्रत करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं, अतः यह व्रत किया कर। इतना कहकर भगवान लोप हो गए।
सूतजी आगे बोले- उस ब्राह्मण ने तत्काल निश्चय कर लिया कि मैं उस व्रत को करूंगा। उस रात ब्राह्मण को निद्रा न आई। अगले दिन वह शीघ्र ही उठकर भिक्षा के लिए निकल पड़ा। उस दिन संयोगवश ब्राह्मण को अधिक भिक्षा मिली। संध्या को उसने बंधुओं के साथ भिक्षा में मिले धन से श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत किया। उस व्रत के प्रारंभ से ही उस ब्राह्मण के कष्ट दूर होने लगे। वह धन-धान्य से संपन्न हो गया।
भगवान का ऐसा चमत्कार देखकर ब्राह्मण प्रति मास सत्यनारायण भगवान का व्रत करने लगा। इस प्रकार जो मनुष्य इस व्रत को करेगा, उसके सब कष्ट नष्ट जाएंगे और अंत में वह मोक्ष को प्राप्त होगा। भगवान लक्ष्मी नारायण ने नारद जी से इस व्रत के संबंध में जो कुछ भी कहा, वह मैंने तुम्हें सब बता दिया है।